स्त्री की जगह
स्त्री की जगह
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एक स्त्री की जगह
कितनी है इस विराट सृष्टि में
जिसे बचाने
ताज़िन्दगी वह
करती संघर्ष
प्रकृति से,
समाज से,
समाज के बेहतर कहे जानेवाले हिस्से से
और-
अपने आप से भी?
ज़रूर वह जगह
बहुत बड़ी होगी
या फिर होगी महत्वपूर्ण बहुत;
मगर हैरत तो
इस बात की
कि सारे जीवन
ऐसी विशेष जगह की तलाश
या कहें संघर्ष के बाद भी
उसकी तलाश
अधूरी ही रहती
उस विराट जगह का
एक छोटा-सा कोना भी
अदृश्य रहता उसकी अन्वेषी दृष्टि से
जिस पर टिके रहने की
बाज़ीगरी दिखाते
उसने बिता दी अपनी
समूची आयु!