इश्क इबादत
इश्क इबादत
यही वो जगह है
मेरी इबादत का जहाँ भी
सजदे में जहाँ झुके सर मेरा
खुदा वहीं हमारा है।
हर धड़क पे नाम तेरा पुकारा है
दूसरी ओर तुम चले गए
बस निशां तुम्हारा पाया है
इश्क था तुमसे, इश्क है तुमसे
ताउम्र तुमसे इश्क का वादा है।
फ़कीरी ही सही जो मिले गंवारा है
सुफ़ियाना मोहब्बत के सदके
तेरी यादों पे अधिकार हमारा है।
रहो तुम गैरो की कुर्बत में
हमने तो रूह से तुम्हें अपना माना है
तभी तो राधा नहीं,
रुक्मिणी सा रुप ठाना है।
इश्क पर ज़ोर नहीं,
नाचीज़ की खता सही
मिले जन्म जो ओर एक
तुमसे इश्क की करनी
खता यही दोबारा है।