आईना
आईना
कौन कहता है आईना झूठ नहीं बोलता,
ज़रा वक़्त तो देखों इसमें,
ये उसके संग नहीं डोलता।
करता है मनमानी अपनी,
चुप रहता है मेरा अक्स,
बस अब लब नहीं खोलता।
कौन कहता है आईना झूठ नहीं बोलता,
पर परछाईयाँ पलट देता है,
ये दिशाहीन ही है डोलता।
अँधेरे में रौशनी से भी नहीं,
कभी करता ये दोस्ती जान लो,
उसे दिशा दिशाकर वापस जाने को बोलता।
कौन कहता है आईना झूठ नहीं बोलता,
खुद टूट जाता है तो तुम्हे भी,
तुम्हे भी टुकड़ो में बताता है।
कितना झूठा है ये अब जान लो,
तुम है दो तो तुम्हारे राज़ नहीं खोलता,
कौन कहता है आईना झूठ नहीं बोलता।
ज़रा वक़्त तो देखों इसमें,
ये उसके संग नहीं डोलता।