ग़ज़ल
ग़ज़ल
गीतिका
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ख्वाब अपने हक़ीक़त बनाने लगे,
आईना देख, नयन शरमाने लगे।।
दिल बेचैन चाहत तुम्हारी लिए,
लफ्ज होंठों पे आ, थरथराने लगे।।
बला दिलकश अदाऐं करती कतल,
वो नशेमन पे बिजली, गिराने लगे।।
रातें लम्बी हुई दिन बेचैनियाँ,
ग़म जुदाई का, हमसे छुपाने लगे।।
मौसम पतझड़ का पत्ते पीले हुए,
नये कलेवर में यारा, ज़माने लगे।।
बेवफा शहर दर्द मीरा का समझे नहीं,
क्षण प्रणयन तन्हा, तड़पाने लगे।।
ये राधा तुम्हारी माधव भावांजलि भरे,
तुम हमें दर्द का सच, दिखाने लगे ।।
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✍🏻 नीतू'अंजलि'
उन्नाव