वो सुबह कभी तो आयेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
आज फिर मन के
किसी कोने से आवाज़ आई
एक नयी उम्मीद की
किरण दी है दिखाई
हिम्मत हारते-हारते
एक नयी सांस के साथ
नए दौर की शुरुआत
होती हुयी दी है दिखाई
मन के कुछ कमरों में
रौशनी के साथ
उम्मीद का अनोखा मिलन
एक अद्भुत एहसास
जैसे मृतआत्मा को मिलने वाले
मोक्ष की उम्मीद
एक एहसास जैसे
सूखे खेत में जलधारा का आगमन
आत्महत्या करते किसान का
पुनः अपने खेत को
जोतने का मन
उसके कमज़ोर होते होंसले को
उम्मीद के पंख मिलने की उम्मीद
इस मृत समान समाज में
मनुष्य पर हावी होने के लिए झगड़ती
कुछ बेजान परम्पराओं
से दूर होने के लिए झगड़ती
एक आवाज़ के जीतने की उम्मीद
वहशियों के बीच
अबला को नोंच खाने वाली इच्छा
से तार-तार होती
अपंग मनुष्यता के
सदृढ़ होने की उम्मीद
टूटी-फूटी दिखाई देने वाली
इस उम्मीद से ही जागा हूँ
आज जागते हुए सोचा है
जो मेरे मन की आवाज़ को सच में बदल जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी...