माँ तुम कहीं नहीं जाती हो
माँ तुम कहीं नहीं जाती हो
माँ तुम कहीं नहीं जाती हो
बेटी के अस्तित्व में ही बस जाती हो।
माँ तुम
तब तो बिल्कुल नहीं भाती हो
जब मेरी बेटी किशोरावस्था की
दहलीज को लाघंती है
मुझमें बसी तुम तब उसको
उलजुलूल नसीहतें देने लग जाती हो।
जब नातिन जवान हो जाती है
तुम्हारा अस्तित्व जाग जाता है
जो छुपा बैठा होता है
अपनी बेटी के ही अन्दर!!
कितनी भी नसीहतें दूँ
नये जमाने की की दूँ मैं दुहाई
समझाऊं कितना भी मन को
पर तुम विद्रोह कर देती हो
दोष तुम्हारा भी नहीं
तुम माँ जो ठहरी।
माँ तुम कहीं नहीं जाती हो
यहीं मेरे अस्तित्व में ही
बसी रह जाती हो।
चिता भले जला दी गयी हो तुम्हारी
पर अपनों की चिंता
सताती रहती है तुमको
सुलगती हुई चिंगारी सी तूम
मेरे ही अन्दर सोयी पड़ी हो!
यौवन की दहलीज पर
रखते ही कदम नातिन के
तुम भड़क जाती हो
अस्तित्व में जो सोयी पड़ी थी
एकबारगी जग जाती हो!
बिटिया कहती है माँ
तुम बदल गई हो
किस्से जो नानी के सुनाती थी कभी
खुद ही तुम उसी में ढल गयी हो |