उजास
उजास
अंगुलियां साथ दें,
इक दूजे का तो,
तस्वीर बदल जाती है,
अंगुलियां साथ ना दें।
इक दूजे का तो भी,
तस्वीर बदल जाती है,
दोनों हालात में,
इतिहास नया बनता है।
एक दरो दीवार को,
मजबूत घर बनाता है,
दूजा मजबूत घर को,
सिर्फ दरो दीवार,
बना देता है।
यह सही है की ताकत,
सेहत बढ़ाने से बढ़ती है,
यह भी सही है की,
घर का हर इंसान यदि,
हाथ बढ़ाए तो,
ताकत बनती है।
फर्क है इन दोनों में,
केवल इतना,
इक खुद में अहं,
तो दूसरी खुद में,
अहं नहीं बनाती है।
फर्क है इनमें इतना,
तो आँखों को भी,
दिखाओ तो सही,
कल जिसे मान चुका है।
वक्त के साथ
उसे अपनाओ तो सही
फिर बदल जाना
अगर कमजोर-सा।
महसूस करो,
बूढ़े माँ-बाप हैं,
बहने हैं, भाई हैं,
तुम भी आकर इसे-
घर बना जाओ तो सही,
इस दिवाली में,
कोई जाला बचा ना रह जाए,
हो सके तो रिश्तों में,
नई उजास जगाओ तो सही।