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sahil srivastava

Drama Romance

3  

sahil srivastava

Drama Romance

पश्मीना

पश्मीना

1 min
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तुम्हारे घर के कोने में बनी,

खिड़की पर खड़े हो,

मैं देखूँगा उगते सूरज को,

पहाड़ों की ओट में से झांकते हुए।


सिसकती-सी ठंड में,

जब तुम सिकुड़ जाओगी,

ओढ़ा दूँगा तुम्हे,

तुम्हारी पसंदीदा शॉल।


धूप के एक टुकड़े को,

मेरी हथेली की उँगलियों से छानकर,

तुम्हारे चेहरे को रोशन करूँगा,

स्नेह और विश्वास के मद्धम आँच पर।


तुम्हारी पसंद की,

मसाला चाय चढाऊंगा,

मेरी ख़ामोशियों,

की गरमाहट से।


जब तुम्हारी आँख लग जायेगी,

तुम्हारी पाश्मीना से बुनी शॉल में से,

तुम्हारी उदासियों का इक धागा,

अपने मफ़लर में बाँध मैं भाग जाऊँगा।


दूर कहीं उसी उगते सूरज के तले,

फ़िर उसी सुकून की तलाश में,

बाकी बची शॉल पर अधबचे धागों से,

तुम बुनती रहना मुस्कुराहटों के फूल।


इनकी ख़ुश्बू को समेट लेना,

मेरे सफ़ेद बुशर्ट में पड़ी इत्र की शीशी में,

हर रोज़ इसकी एक बूंद से,

तर करना इन वादियों को।


घूँट-घूँट कर पीना,

मेरे हाँथों की बनी चाय को,

और...


मेरी सुलगायी मद्धम आँच को,

जलता ही छोड़ देना तुम,

वहीं कहीं अपने घर के कोने में,

या शायद...

अपने दिल के।


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