उसने मुझसे कहा
उसने मुझसे कहा
दिल की बातें
ऐसी नासमझी की बातें...
उलटी-सीधी बहकी बातें...
दानिश्वर काहे समझेंगे...
दीवानों की दिल की बातें...
बेशुमार सपने
उन अधखुली
ख्वाबीदा आँखों ने
बेशुमार सपने बुने
सूखी भुरभरी रेत के
घरौंदे बनाए
चांदनी के रेशों से
परदे टाँगे
सूरज की सेंक से
पकाई रोटियाँ
आँखें खोल उसने
कभी देखना न चाहा
उसकी लोलुपता
उसकी ऐठन
उसकी भूख
शायद
वो चाहती नहींं थी
ख्वाब में मिलावट
उसे तसल्ली है
कि उसने ख्वाब तो पूरी
ईमानदारी से देखा
बेशक
वो ख्वाब में डूबने के दिन थे
उसे ख़ुशी है
कि उन ख़्वाबों के सहारे
काट लेगी वो
ज़िन्दगी के चार दिन…
सलामती की दुवाएं
वो मुझे याद करता है
वो मेरी सलामती की
दिन-रात दुआएँ करता है
बिना कुछ पाने की लालसा पाले
वो सिर्फ और सिर्फ देना ही जानता है
उसे खोने में सुकून मिलता है
और हद ये कि वो कोई फ़रिश्ता नहीं
बल्कि एक इंसान है
हसरतों, चाहतों, उम्मीदों से भरपूर…
उसे मालूम है
मैंने बसा ली है एक अलग दुनिया
उसके बगैर जीने की मैंने
सीख ली है कला…
वो मुझमें घुला-मिला है इतना
कि उसका उजला रंग और मेरा
धुंधला मटियाला स्वरूप एकरस है
मैं उसे भूलना चाहता हूँ
जबकि उसकी यादें मेरी ताकत हैं
ये एक कड़वी हकीकत है
यदि वो न होता तो
मेरी आँखें तरस जातीं
खुशनुमा ख्वाब देखने के लिए
और ख्वाब के बिना कैसा जीवन…
इंसान और मशीन में यही तो फर्क है……
बाज़ार में स्त्री
छोड़ता नहीं मौका
उसे बेइज्ज़त करने का कोई
पहली डाले गए डोरे
उसे मान कर तितली
फिर फेंका गया जाल
उसे मान कर मछली
छींटा गया दाना
उसे मान कर चिड़िया
सदियों से विद्वानों ने
मनन कर बनाया था सूत्र
"स्त्री चरित्रं...पुरुषस्य भाग्यम..."
इसीलिए उसने खिसिया कर
सार्वजनिक रूप से
उछाला उसके चरित्र पर कीचड़...
फिर भी आई न बस में
तो किया गया उससे
बलात्कार का घृणित प्रयास...
वह रहा सक्रिय
उसकी प्रखर मेधा
रही व्यस्त कि कैसे
पाया जाए उसे...
कि हर वस्तु का मोल होता है
कि वस्तु का कोई मन नहीं होता
कि पसंद-नापसंद के अधिकार
तो खरीददार की बपौती है
कि दुनिया एक बड़ा बाज़ार ही तो है
फिर वस्तु की इच्छा-अनिच्छा कैसी
हाँ.. ग्राहक की च्वाइस महत्वपूर्ण होनी चाहिए
कि वह किसी वस्तु को ख़रीदे
या देख कर
अलट-पलट कर
हिकारत से छोड़ दे...
इससे भी उसका
जी न भरा तो
चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया...
क़ानून, संसद, मीडिया और
गैर सरकारी संगठन
इस बात पर करते रहे बहस
कि तेज़ाब खुले आम न बेचा जाए
कि तेज़ाब के उत्पादन और वितरण पर
रखी जाये नज़र
कि अपराधी को मिले कड़ी से कड़ी सज़ा
और स्त्री के साथ बड़ी बेरहमी से
जोड़े गए फिर-फिर
मर्यादा, शालीनता, लाज-शर्म के मसले...
बिटिया से
तुम मेरी बेटी नहीं
बल्कि हो बेटा...
इसीलिये मैंने तुम्हे
दूर रक्खा श्रृंगार मेज से
दूर रक्खा रसोई से
दूर रक्खा झाडू-पोंछे से
दूर रक्खा डर-भय के भाव से
दूर रक्खा बिना अपराध
माफ़ी मांगने की आदतों से
दूर रक्खा दूसरे की आँख से देखने की लत से...
और बार-बार
किसी के भी हुकुम सुन कर
दौड़ पडने की आदत से भी
तुम्हे दूर रक्खा...
बेशक तुम बेधड़क जी लोगी
मर्दों के ज़ालिम संसार में
मुझे यकीन है...
चील-गिद्ध-कौवे
बेशक तुमने देखी नहीं दुनिया
बेशक तुम अभी नादान हो
बेशक तुम आसानी से
हो जाती हो प्रभावित अनजानों से भी
बेशक तुम कर लेती हो विश्वास किसी पर भी
बेशक तुम भोली हो...मासूम हो
लेकिन मेरी बिटिया
होशियार रहना
ये दुनिया इतनी अच्छी नहींं है
ये दुनिया इतनी भरोसे लायक नहींं रह गई है
जहां उड़ती हैं गौरैयाँ खुले आकाश में
वहीं उड़ते हैं चील-कौवे-गिद्ध भी
तुम्हे होशियार रहना है गिद्धों से
और पहचानना है गौरैया के भेष में गिद्धों को...
तभी तुम जी पाओगी
उड़ पाओगी अपनी उड़ान...
बिना व्यवधान...
k
उसने मुझसे कहा
ये क्या लिखते रहते हो
गरीबी के बारे में
अभावों, असुविधाओं,
तन और मन पर लगे घावों के बारे में
रईसों, सुविधा-भोगियों के खिलाफ
उगलते रहते हो ज़हर
निश-दिन, चारों पहर
तुम्हे अपने आस-पास
क्या सिर्फ दिखलाई देता है
अन्याय, अत्याचार
आतंक, भ्रष्टाचार!!
और कभी विषय बदलते भी हो
तो अपनी भूमिगत कोयला खदान के दर्द का
उड़ेल देते हो
कविताओं में
कहानियों में
क्या तुम मेरे लिए
सिर्फ मेरे लिए
नहींं लिख सकते प्रेम-कवितायें...
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ प्रिये
कि बेशक मैं लिख सकता हूँ
कवितायें सावन के फुहारों की
रिमझिम बौछारों की
उत्सव-त्योहारों की कवितायें
कोमल, सांगीतिक छंद-बद्ध कवितायें
लेकिन तुम मेरी कविताओं को
गौर से देखो तो सही
उसमे तुम कितनी ख़ूबसूरती से छिपी हुई हो
जिन पंक्तियों में
विपरीत परिस्थितियों में भी
जीने की चाह लिए खड़ा दिखता हूँ
उसमें तुम्ही तो मेरी प्रेरणा हो...
तुम्ही तो मेरा संबल हो...
बेटियाँ
निडर होकर कर रही मार्च पास्ट
बेटियाँ
जीतने चली हैं जंग
बेटियाँ
करेगी घोषणा
जीत लिए मैदान हमने
पिता की चिंता अब नहीं हैं बेटियाँ
माँ की परेशानी नहीं हैं बेटियाँ
भाई के रक्षा-बंधन की मोहताज
अब नहीं हैं बेटियाँ
पति की दुत्कार अब
नहीं सहेगी बेटियाँ
बेटियों ने अपनी किस्मत
खुद लिख लेने का कर दिया ऐलान हैं
बेटियों ने तलाश लिए अपने लिए नए खुदा...