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Vigyan Prakash

Drama

3  

Vigyan Prakash

Drama

मै शिव, मुझमे संसार सकल

मै शिव, मुझमे संसार सकल

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मुझसे है सुर्य,

मुझसे है चंद्र,

मुझसे ही धरा,

संसार सकल।


मुझसे ही क्रोध,

मुझसे ही प्रेम,

सब भावनाएँ,

मुझसे है अकल।


मुझसे ही रावण,

मुझसे ही राम,

मेरे ही गिर्द,

महाभारत सकल।


जो है आसक्त,

जो है निरीह,

मुझसे ही पाते,

प्राण सकल।


मैं शिव हूँ,

मैं ही हूँ आयाम,

जीवन का उद्गम,

मैं ही विराम।


मैं सोच हूँ,

मैं ही हूँ सत्य,

मै सर्वप्रेमी,

मै हूँ प्रवृत्य।


मैं वैरागी,

मै हूँ गृहस्थ,

मैं हूँ अनंत,

मै ही निरस्त।


सब वेद मेरे,

हो चाहे अल्लाह

राम मेरे।


मुझसे है कर्म,

मुझसे निस्कर्ष,

मुझसे ही गंगा,

का प्रवर्ष।


मुझसे ही जीवन,

मुझसे मृत्यु,

सब प्राणों का,

आधार सकल।


मैं शिव,

मुझमे संसार

सकल।।


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