क्या सोचकर कदम रुक गए
क्या सोचकर कदम रुक गए
क्या सोचकर कदम रुक गए
क्यों भीड़ देखकर काँधे झुक गए
उपर नज़र उठाकर देख राही
उगता सूरज नज़र मिलाने को कहे।
तेरे लिए ही फैला रहा ये सवेरा
जाग जा कर पूरी राह घटाने को कहे।
क्या सोचकर कदम रुक गए
क्यों भीड़ देखकर काँधे झुक गए
देख परछाई लम्बी हो रही राही
तुझे मंज़िल की परछाई छूने को कहे।
दो कदम और चल मेरे करीब आ जा
अब घाव मत देख छाले भुलाने को कहे।
क्या सोचकर कदम रुक गए
क्यों भीड़ देखकर काँधे झुक गए
भीड़ में तुझ पर नज़रे गड़ाए बैठी किरणें,
कांधों को तू क्यों झुकाए बैठा मेरे राही।
झरनों को बहाकर मोती चमकाए बैठी किरणें,
मंज़िलों को कतार में मंज़िल दिखाए बैठी किरणें।
क्या सोचकर कदम रुक गए
क्यों भीड़ देखकर काँधे झुक गए।।