माँ
माँ
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सृष्टि का स्वंय स्वरूप
सृजित करे शरीर रुप
प्रवाहित रक्त का
एक-एक कण
सिन्चित करे ममत्व भर मन
स्वर, रस, स्पर्श का
परिचय जिससे
सृष्टि करती है
संवाद उससे
घास के पत्ते पर
ओस की बूँद-सा जीवन
सावधानी से सहेजे
यह मातृ मन
माँ केवल नही
व्यक्तित्व
स्वयं विसर्जित
अस्तित्व
सृजन आनंद है
दुख नही
माँ की अव मानना में
सुख नही
माँ के दो रुप हैं
वह जीवन भी
और मृत्यु भी
एक स्त्रोत की तरह
दूसरा अंत की तरह
सृजन और संहार
एक ही सिक्के के
दो पहलु !
समझो इस शक्ति को
अम़ृत-विष अमरक्ति को