काबिल ना होती
काबिल ना होती
मुश्किलों से राह सजाकर
तूने मुझे चलना सिखा दिया
हर डर से जूझने का
तूने हौसला बंधा दिया...
ना होती जो गुस्ताखियां
कैसे यह बोलती मैं खुद से।
तू नहीं तेरी राह गलत है
ज़िंदगी नहीं नराज़ तुझसे।
जो दर्द से वाकिफ न होती
खुशी मुझे हासिल न होती।
तू टुकड़ों में न तोड़ती तो
ज़िंदगी तेरे काबिल न होती।
ज़िदंगी तुझे क्या दोष दूं।
तेरी वजह से तो ज़िंदा हूँ।
तुझ में नहीं कोई कमी
ऐ जिंदगी तू तो रे बेकसूर है।
इंसान के हाथों मजबूर है।
चोट देकर तूने किया आँसुओं से तर
फिर तूने ही खुशियाँ देकर किया बेसबर।
गिराकर फिर उठाकर इस सबर को
बना दिया कुछ बेहतर मुझ बेखबर को।
जो दर्द से वाकिफ ना होती
खुशी मुझे हासिल ना होती।
तू टुकड़ों में ना तोड़ती तो
ज़िंदगी तेरे काबिल ना होती।
हार कर जो बैठ गई
आशाओं का समंदर तब बह गया।
अभी जिंदगी बाकी है मेरे दोस्त
वो किनारा मुझसे कह गया।
मुसाफिर हूँ आना...फिर जाना है तेरी गलियों से
मंज़िल अभी दूर है तितली की उन बगियों से।
जी लूं तुझे जी भर के मेरी तमन्ना कहे
तू हो कही भी मगर...मेरी आत्मा में रहे।
जो दर्द से वाकिफ न होती
खुशी मुझे हासिल न होती।
तू टुकड़ों में न तोड़ती तो
ज़िंदगी तेरे काबिल न होती।