दंगा
दंगा
शहर जलता रहा सहर होने तक
चिल्लाहटों के बे-असर होने तक
टूटती नब्ज़, सीने से छूटती साँसें
आँखें रोती रहीं ज़हर होने तक
कटा धर, फूटा माथा, टूटा इंसान
खूँ बहा जमीं के नहर होने तक
बूढ़े, बच्चे, औरतें सब रौंदी जाएँगी
हैवानियत के मज़हर होने तक
मज़हब के नाम पर मौत बाँटना
चलता रहेगा अँधा दहर होने तक