सुकून कब मिला
सुकून कब मिला
टेंशन से भर गई है जिंदगी
इतवार कब आया कब गया
पता ही नही चलता
मौज मस्ती तो अब ख्वाब
बनकर रह गयी
दिन छुट्टी का कैसे गुजर जाता है
पता ही नही चलता
काम इतने होते है कि
करते-करते थक से जाते है
वो बचपन ही था जब कुछ
पल सुकून के मिलते थे
थोड़ा सा खेलना और मौज
मस्ती हो जाती थी
समझदार जब से हुए है हम
बोझ जिम्मेदारियो का
बढ़ता चला गया
कब सोमवार आया, कब बुधवार या
फिर कब इतवार
कुछ अंदाजा ही नही रहता
दिन हफ्ते और महीने गुजरते जा रहे है
सुकून कब मिला था
आखिरी बार याद नही