चला आता है बेवफा ही हर बार कोई.
चला आता है बेवफा ही हर बार कोई.
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चला आता है बेवफ़ा ही हर बार कोई,
अब के आये तो आये तुझसा ग़मगुसार कोई,
अपने ग़मों का तू हमसे साझा नहीं करता,
ग़ैर हैं क्या तेरे लिऐ हम यार कोई ,
साक़ी तुझे लगता है सब मुत्मईन हैं मगर,
तेरी महफ़िल में खड़ा है अब भी बेक़रार कोई,
गुलाब सी वो आँखें मुन्तज़िर पत्थर की हो गई,
ऐसे भी करता है क्या किसी का इन्तेज़ार कोई.