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anu harbola

Fantasy

3.8  

anu harbola

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हाउस हसबैंड यानि घरपति

हाउस हसबैंड यानि घरपति

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आजकल कुछ नया-सा

फितूर हो गया है

मिस्टर को

हर समय कुछ

नया करने के लिए देखते रहते

सिस्टम को,

बहुत दिनों से यह सब चल रहा

देख-देख कर मन कुचट रहा...


मैं बोली, नाश्ता कर लो और

ऑफिस को निकल लो

उनके उत्तर ने किया सन्न

बोले...

आज से नहीं जाना मुझे ऑफिस

घर पर ही रहने का बनाया मैंने मन

मैं थक गया करके एक ही काम

कुछ नया करना चाहता हूँ काज...


मैं बोली, क्या करोगे? इस उम्र में नया

चले जाओ ऑफिस, करो मुझ पर दया

बोले थक गया रोज़-रोज़ की चिक-चिक से

एक ही काम, एक ही जिम्मेदारी निभाने से

भर गया मेरा मन...


मैं बोली - क्या करोगे ?

वे बोले -चाहता हूँ बनना हाउस हसबैंड

हाउस हसबैंड मतलब ??

वे बोले मतलब घरपति !!!

तमतमाए हुए बोले

जाती हो स्कूल पढ़ाती हो अंग्रेज़ी

जानती नहीं, हाउस हसबैंड मतलब

घरपति! घरपति!

मैं बनना चाहूँ घरपति सिर्फ घरपति!!!


मेरा उत्तर

क्या कम हो गया दिमाग में नमक ?

क्या कहेंगे लोग कि दो बच्चों का बाप?

बन गया घरपति घरपति!

तुम नहीं कोई लखपति

करोड़पति! अरबपति!

जाओ जल्दी ऑफिस बैग उठाकर...


पर पति बैठे थे ठान कर

वे हैं अब घरपति! घरपति!

उनकी जिद को वहीं छोड़ा

स्कूल को मैंने मुँह मोड़ा

रास्ते भर सोचती रही

हाय रे! मेरी किस्मत

पति सबके बनना चाहे

लखपति! करोडपति! अरबपति!

और मेरा पति

घरपति! घरपति! घरपति!..


बोला बेटा एक दिन

माँ - कॉलेज वाले

माँग रहे पापा का प्रोफेशन

गुस्से से भरी मैं बोली

लिखवा दो -

निट्ठल्लापन

चिल्लाकर बोले पति

नहीं हूँ मैं निट्ठल्ला

लिखो - हाउस हसबैंड यानि घरपति।


तमतमाई गुस्से से बोली बेटी

नाक कटवा दी पापा आपने

सामने दोस्तों के रिश्तेदारों के

सबके पापा ऑफिस जाते

आप घर पर चूल्हा जलाते

पति बोले शांत रहकर -

औरत रहे घर पर

तो हाउस वाइफ और होम मेकर

मैं रह रहा हूँ तो

सनकी और बेकार



कोई गलत काम नहीं कर रहा मैं

सिस्टम को सपोर्ट कर रहा मैं

नर-नारी एक समान

दोनों का एक बराबर मान-सम्मान



मैं दिखाना चाहता हूँ सभी को

न कम समझो घर-गृहस्थी के काम को

है बहुत समझदारी और मेहनत का काम

इसे पूरा करने में निकल रहा है रोज़ मेरा दम

महान है

तेरी मम्मी

मेरी मम्मी और सभी की मम्मी

किसी ने निकाली नहीं आज तक एक आवाज़ कि

काम ज्यादा या मैं थक गई

पूरी ज़िदगी उनकी चूल्हे-चौके में कट गई

वह घर तक ही हम सबके लिए सिमट कर रह गई

न कोई छुट्टी न कोई पगार

और

 उनको सुनाते हम दिन में हज़ारों बार ...

अनूपा  हर्बोला

असम 


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