तुम मेरी डायरी बनना
तुम मेरी डायरी बनना
तुम मेरी डायरी बनना
जिससे सब कुछ मैं बोल सकूँ
अपने दिल के हर राज को खोल सकूँ
पर वो बन्द रहे ,
जिसे सिर्फ मैं ही खोल सकूँ ,
तुम ,
जिसके हर पन्ने को मैनें
धडकनों की गूँज से भरा हो ,
जिसमें लिखे शब्द ,मुझे बोलते हों ,
मेरे उलझे मानस को खुद फंसकर भी खोलते हों ,
तुम ,
उन पन्नों से मेरे सपनों को चुरा लेना
मुझे पता है, तुम उन शब्दों को शब्द नहीं समझोगी ,
तुम उन शब्दों में मुझको बिखरा पाओगी ,
मेरे बनते –बिगड़ते कल को पढ़कर
हँसे बिना ना रह पाओगी ,
मुझको इतना तन्हा पाकर ,
कहीं डर तो तुम ना जाओगी ,
तुम आना मेरी जिंदगी में ,
पर मेरी कविता को मिटाकर नहीं ,
प्राण सींच से गए हैं इनमें ,
इन्हे शब्द कहूँ या धड़कन ,
ये रच बस गए हैं मुझमें ,
तुम ....आना
इन शब्दों में ही आ जाना,
मैं तुमको भी इन पन्नों तक ले आऊँगा ,
मेरी कविता का सार तुम बनना ,
मेरे ख्यालों का ताज तुम बनना ,
तुम, हाँ तुम, मेरी सबसे सुंदर कविता बनना ,
और मैं जीवन भर, इस कविता को गुनगुंनाऊंगा ।