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Satyam Mahato

Romance

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Satyam Mahato

Romance

दो प्रेमी

दो प्रेमी

1 min
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बूँद-बूँद गिरना चाहूँ मैं आज तेरी ज़मीं पे,

इक अरसे से कोई बरसात जो नहीं हुई है,

एक हर्फ़ तो खींच दूँ, तेरे इस कोरे बदन पे,

पर टीस इस लंबी जुदाई की,

ऐसे तो नहीं मिटने वाली है।

 

चाँद की इस लुका-छुपी में,

कुछ जज़्बात आज बयाँ होंगे,

बेड़ियों से बंधी वो धड़कने भी,

आज यहाँ रिहा होंगी,

आँखों से नींदें उड़ेंगी,

नए सपनों की बात जो होने वाली है,

अरसे बाद आयी है ये रात तो,

फिर से ये रात लंबी होने वाली है।

 

 बिलख के रो पड़े जो जज़्बात तेरी बांहों में,

पिघल गए जख़्म सारे, ढो रहा था जो कई सालों से,

समा गयी ये रूह मेरी तुझमें कहीं...

पा लिया मैंने खुद को, जो छोड़ गया था यहीं कहीं,

भींगने लगी हैं दिल की ये बंजर जमीं,

अश्कों में घुली यादों की धारा जो बह चली।

 

खामोशी में छुपी मिलन की एक संगीत लहरी गूंजती है,

ये शमा मुहब्बत की, इस रात संग पिघलती है,

अरसे बाद मिले हैं दो प्रेमी…

तो फिज़ाओं में सिर्फ इश्क़ की खुशबू ही महकती है,

जो कुछ भी कहती है ये कलम मेरी,

ये कागज़ उसे चुप-चाप सुनती है...


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