जब मैंने खुद से बात की
जब मैंने खुद से बात की
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खुद को सामने खड़ा कर पूछना
तू मुझसे,
अंदर अंधेरा है
फिर चेहरे पर इतना नूर क्यों है
मेरी हाथ की बनाई कॉफी पियेगा
या मेरी कमीज़ का बटन सियेगा
चल कहीं दुनिया के अंधेरे में
घूम के आयें
वो नीला समुन्दर
डर मत मैं हूँ ना
ज़्यादा से ज़्यादा क्या करेगा
इसमे कूद ही तो जाएगा
ऐसी बुरी हालत में कुछ नहीं
डूब ही तो जाएगा
फिर निकाल लेंगे बाहर,
जब किसी झरोखे से रौशनी आने लगेगी
जिसे पता नहीं तेरी
आंखे तुझे रोज़ पूछती होगी
अच्छा सुन
ये सब छोड़ खुद से ऐसे कहेगा
चल इधर मुंह मोड़
कुछ न था पर ये बात कैसे कहूं
किसी से किस मुंह से कहूँ
मेरी तो खुद की परछाईं भी मेरी नहीं है