ये दुनिया है , यहाँ ये क़ायदा है ।
ये दुनिया है , यहाँ ये क़ायदा है ।
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ये दुनिया है, यहाँ ये क़ायदा है,
किनारे को किनारा काटता है।
तड़प जो खींच लाती है यहाँ तक,
कि इस मिट्टी से रिश्ता पास का है।
फ़क़त यादें ही रह जाती हैं उसकी,
जो निकले घर से, वो कब लौटता है।
कोई तो बात है इस शख्सियत में,
हमें अब शहर सारा जानता है।
नसब है क्या, है रंगो-बू कहाँ की।
ग़ज़ल का अपना लहज़ा बोलता...