टूट रहा है
टूट रहा है
जो रहा नहीं
वो था कभी
और जो है अभी
वो भी मेरे
अहम् के संग
टूट रहा है
दिनभर
रातभर
जो मुझे नश्तर
चुभोता
वो संगी अब
रहा नहीं
टूटे हर ख्वाबों के
संग
बीता नहीं कोई भी
पल
और जो बीत रहा है
वो भी मेरे भ्रम के संग
टूट रहा है।
जो रहा नहीं
वो था कभी
और जो है अभी
वो भी मेरे
अहम् के संग
टूट रहा है
दिनभर
रातभर
जो मुझे नश्तर
चुभोता
वो संगी अब
रहा नहीं
टूटे हर ख्वाबों के
संग
बीता नहीं कोई भी
पल
और जो बीत रहा है
वो भी मेरे भ्रम के संग
टूट रहा है।