उज्जैन मुझे माफ़ करना
उज्जैन मुझे माफ़ करना
कल ही की तो बात है
दिन भर घूमा किया
अपने कई साथियों सहित
उज्जैन में
अवंतिका के अलग-अलग
स्थलों पर जाकर
ख़ूब पास से देखा
महसूसा और छुआ भी
निरंतर सिकुड़ती शिप्रा को
शिप्रा, जो कभी अमृतसंभवा
व ज्वरध्वनि थी
हमारे स्मृति लेखों में
हमारी दिनचर्या में
होली के पूर्व आगमन पर
'महाकाल' की नगरी में
इस तरह समूह में घूमना
याद रहेगा कई-कई वसंत
'कृष्ण-सुदामा' के इस पुरातन
मैत्री-स्थान पर
कुछ नऐ मित्र भी बने
इस आकांक्षा और संकल्प के साथ
कि निभाई जा सके मित्रता
यथासंभव
स्वार्थ- संकुल 'कलिकाल' में भी
आज सुबह
जब मैं अपनी जोड़ी भर जुराबें
धो रहा था
मालवा की मिट्टी
साबुन के झाग की
धुलाई-क्षमता पर भारी पड़ रही थी
(कल दिनभर अपनी जुराबों में घूमता रहा उज्जैन में यहाँ-वहाँ)
क्या अद्भुत संयोग है कि
सुबह-सुबह ही मुझे
मालवा की मिट्टी से
'धुलेंडी' खेले जाने का
गाढ़ा बोध हुआ
जिसके गवाह हैं
विक्रम विश्वविद्यालय के
अतिथि निवास के
स्नानघर का
फर्श और उसकी दीवारें
उज्जैन ! मुझे माफ़ करना
मैं ले जा रहा हूँ
तुम्हारे कुछ रंग
अपने साथ
दिल्ली तक
क़ैद करके उन्हें
अपनी जुराबों में
जिन पर अनछुऐ रह गऐ
तुम्हारे कुछ निशान
लाख प्रक्षालन के बाद भी
अगली बार
जब आना होगा उज्जैन
घूमूँगा इसकी मिट्टी पर
नंगे पैर
कई कई दिन और
फ़िलवक़्त तो नहीं है
मगर निरंतर घूमने से
जब 'अपन' के पैरों में भी
सुदामा के पैरों सी
बिवाइयाँ फटेंगी तो
उन बिवाइयों पर
लेप लगा सकूँगा
पंचक्रोशी की
पावन मिट्टी की
धन्य है उज्जैन
मैं यहाँ की मिट्टी पर
अपना मस्तक नवाता हूँ।
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