ना जाने क्यों !
ना जाने क्यों !
ना जाने क्यों, आज वक़्त रे,
हम पे है सक़्त रे!
ना हवा इस ओर है बहती,
ना कोई कली की खुशबू है आती,
जाने क्यों आसमान से सूरज है रूठा,
तक़्दीर से अपना क्यों साथ है छूटा,
वो सावन की बूंदे क्यों बरसती नहीं,
वो भीगी मिट्टी क्यों महकती नहीं,
क्यों रास्ते से नयी राह जुड़ती नहीं,
क्यों लोग पुराने मिलते नहीं,
आज ये सोच मन में है आई,
बचपन की हंसी हमने है गवाई,
अभी लौट चलने को दिल करता है,
झूठी हंसी से अब नहीं मन भरता है ।