दर्द और ख़्वाहिश
दर्द और ख़्वाहिश
तुम बिंधी पड़ी थीं सुईयों से
बिस्तर पर तुम लथपथ थी
और मैं पास तुम्हारे बैैठा था
हाथों में नन्हा हाथ लिये
माथे पर सहलाता था मैं
चूमता था पागल की तरह
तुम अपनी निस्तेज आँखो सें
मुझे देख रही थी एकटक
जैसे कहती हो मुझसे
पापा, मैं अभी भी ज़िन्दा हूँ।
तुम कोई तो जतन करो
मुझ को तुम यूँ तो न जाने दो।
मैं हूँ वही तुम्हारी प्यारी
जिसे भगवान से तुमने मांगा था।
पर हाय तुम्हारा ये बाप अभागा
कुछ भी तो न मैं कर सका
जिस गोद में खेली थीं
अंत भी उसी की गोद में हुआ
बहुत ही बेबस मैं लाडली
क्या करता बस इंसान ही था
इक इक पल तुमको खुद से
जाते दूर बस देखना ही था
तुम फिर आना मेरी बच्ची
हम नयन द्वार पर रखे है
तेरे आने की ख़्वाहिश में
जीवन सम्हाल रखे है।