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Abasaheb Mhaske

Abstract

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Abasaheb Mhaske

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कुछ पल कि है जिंदगी

कुछ पल कि है जिंदगी

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जिंदगी एक मेला है, फिर भी दिल क्यों अकेला है

एक तरफ भूख ही भूख, दूसरी तरफ सूख ही सूख

कहीं ऊँचे गगन में उड़ान भरने के सपने दिल में है

तो कहीं बे मतलब कि जिंदगी जी रहे हैं

कीड़े मकौड़े की तरह !

ये अजीब सी दास्तान हैं जिंदगी भी

एक तरफ दो वक्त कि रोटी के लिये मोहताज

दूसरी तरफ डायट के नाम पर भूखा पेट

एक न होने के वजह से खा नहीं सकता

दूसरा होने पर भी !

भूख दोनो तरफ अलग-अलग, भूख लगना धर्म है

फिर भी भूख सबको छलती है, कभी मजबूर करती है 

कभी रोती-बिलखती है, आँखो से टपकती है

जाने क्या-क्या गंदे काम करवाती है !

  

जिंदगी एक धुआँ है, एक पल का नहीं भरोसा

आयें हैं जिंदगी में तो, कुछ कर दिखाना है

आज हैं कल हो या ना हो.. किसको है पता

रुठेगा कौन ? कब कहाँ कौन हो जायेगा खता !

  

जिंदगी एक आईना है, सही मायने में

वास्तविकता दर्शाती, सजग, निश्चल, उल्लासित

बहकना, महकना, रुठना ,मनाना

चलता रहे ख़ुशियों का सिलसिला !

 

याद रहे बहुत कुछ बाकी हैं करना

जिंदगी तू है कैसी ? जितनी जिये

उतनी ही कम लगे, सुख ही ग़म लगे 

मरते दम तक जिने कि चाहत जगे !  

जिंदगी है एक सुख-दुःख का मेला

जाने क्यों सब तरफ झमेला ही झमेला

मेहमान हैं हम सब धरती पर, बस चंद दिनो के 

कुछ पल कि है जिंदगी, हंस हंस के जीओ-जी भर के ! 

  


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