कर्म
कर्म
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अंधेरी रातों में सुनसान राहों में
एक अकेला चलने लगा था वो
कभी नशे में तो कभी होश में
डगमगाते कदम, आगे बढ़ने
लगा था वो।
कुछ ऐसा एहसास होने लगता है
जब खुद से विश्वास छूटने लगता है
हर कदम पे तन्हाई छा जाती है
पल में अंदर से डर सताता है।
कर्मों का फल तो भोग करना ही पड़ता है
जो बीज बोए थे उसे काटना ही पड़ता है
बुरे कर्म जीने नहीं देते
एक घुटन मजबूर करता है।
जीवन कर्मों का प्रतिबिम्ब है
और भाग्य प्रतिबिम्ब की रेखा
करना हो मजबूत इन रेखाओं को
तो बढ़ाओ ऊंचा अपने कर्मों की सीखा।