ये न पूछ कि वो मेरा क्या लगता
ये न पूछ कि वो मेरा क्या लगता
ये न पूछ कि वो मेरा क्या लगता है
कभी खुदा, कभी सनम लगता है।
बिजलियाँ कड़क उठती हैं मुझमें
वो घने बादलों का मौसम लगता है।
मैं कितना भी संवार लूँ खुद को
बग़ैर उसके सब बेरहम लगता है।
क्या जीस्त है मेरी, बिना उसके
दो कदम भी सौ कदम लगता है।
वो रहे तो सब सच लगे, नहीं तो
ये दो जहाँ बस वहम लगता है।