सीढ़ी
सीढ़ी
सीढ़ी पर चढ़कर
ढूंढ़ता हूँ
बादलों में छुपे चाँद को
पकड़ना चाहता हूँ मामा को
बचपन में दिलों दिमाग में भरा था।
लोरियों, कहानियों में रचा बसा था
माँ से पूछा की मामा अपने घर कब आएंगे
ये तो बस तारों के संग ही रहते है
ये स्कूल भी जाते या नहीं
अमावस्या को इनके स्कूल की छुट्टी होगी।
तभी तो ये दिखते नहीं
माँ ने आज खीर बनाई
इसलिए मामा को खाने पर बुलाने के लिए
सीढ़ियोंपर चढ़ कर देखा
मामा का घर तो बहुत दूर है।
इसलिए माँ सच कहती थी
चंदा मामा दूर के पाए पकाए .....
बड़ा होके रॉकेट से चन्द्रमा पर जाऊंगा
जैसे गए थे निल आर्मस्ट्रांग
तब माँ के हाथो की बनी
खीर का न्यौता अवश्य दूंगा।