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Anandbala Sharma

Abstract

4.7  

Anandbala Sharma

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क्षणिकाएँ

क्षणिकाएँ

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446


विदा करते समय

रोती हुई बेटी को माँ ने समझाया

बेटी तू जरा भी चिंता मत करना 

ससुराल में निडर होकर रहना

मैंने तेरे सामान के साथ

अग्निशामक यंत्र भी रख दिया है।


शिक्षा संस्थानों का दावा है

हम इन्सान बनाते हैं

जिनका कोई चरित्र नहीं होता

उन्हें चरित्र प्रमाणपत्र बाटें जाते हैं।


खुशी आती है

आँगन में फुदकती चिड़िया की तरह 

पलभर में उड़ जाती है

गम आता है

अनचाहे अतिथि की तरह

टिक जाता है


अगरबत्ती की तरह जली मैंं

उम्र भर धीरे-धीरे 

लुटाती रही सुगंध दूसरों के लिए 

बटोरती रही राख अपने लिए


फैला है चहुँओर 

नफरत का अंधेरा 

दिल के दिए में

प्रेम की बाती 

जला के देख 


सत्य का आग्रह 

कुछ ऐसा बढ़ा

चाँद चाँद न रहा

उपग्रह होकर रह गया 

अब उपमान न रहा


ढाई आखर प्रेम के

जो नहीं समाते थे कभी 

तीन लोकों में

अब सिमट कर रह गए हैं

केवल तीन शब्दों में


समाओ कुछ इस तरह से

इन मुंदी पलकों में

न निहारूं मैं किसी को

न परखे तुम्हें कोई


दिल हो गया तुम्हारा 

चंद यादों की खातिर 

रहते हैं अपने घर में

परायों की तरह ।


जीवन सरिता में आप और हम

एक ही नाव पर सवार हैं

फर्क सिर्फ इतना है

आपकी मंज़िल उस पार है

हमारी मंज़िल इस पार है।


हमने ही नहीं, देवी देवताओं ने भी 

तोड़ी है परम्परा 

विद्या के मन्दिरों में, देवी सरस्वती 

के साथ निवास करती है चंचला।


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