ख़ुद से कहीं दूर
ख़ुद से कहीं दूर
गले लगना तो दूर की बात, एक-दूजे से हाथ नहीं मिलता;
बचपन की तरह गुफ़्तुगू को अब अपना साथ नहीं मिलता...
अब कुछ पूछ भी लूँ गर, दिल से कोई जवाब नहीं मिलता;
कोई दिलासा... वो पहले सा, बढ़ा हुआ हाथ नहीं मिलता...
बेग़ानों को तो ख़ैर फ़ितरतन, ताउम्र बेग़ाना ही रहना था;
शिकायत अपने साये से है जो अब मेरे साथ नहीं मिलता...
अपनी बर्बादियों का ग़ालिबन ज़िम्मेदार ख़ुद मैं ही था;
मेरे टूट कर बिखरने में किसी का भी हाथ नहीं मिलता...
गोया उम्र के साथ-साथ कहीं, ख़ुद से दूर हो गए हैं शायद;
अपना ही पता नहीं मिलता, अपना ही साथ नहीं मिलता...
गुफ़्तुगू: बात-चीत; फ़ितरतन: आदत अनुसार; ताउम्र: पूरी ज़िन्दगी; ग़ालिबन: शायद; गोया: जैसे