दामन
दामन
याद है अपनी पहली मुलाक़ात
तभी से आप हमें लुभाने लगे !
ज़िन्दगी से थे नाउम्मीद हो चले
लौट उसकी तरफ़ आने लगे !
पल जो नीरस हुआ करते थे...
ख़ुशगवार से होकर सुहाने लगे !
भुलाकर ग़म के अफ़सानों को
ख़ुशी के नग़्मे हम गाने लगे !
पर जैसे रौशनी कम होते ही
साथ छोड़ साया भी जाने लगे !
वक़्त के ज़रा सा बदलते ही
आप अस्लियत दिखाने लगे !
काले-घने बादल छटेंगे भी ज़रूर
क्योंकर आप फिर घबराने लगे !
समझना-समझाना पर किस काम
जब कोई दामन ही छुड़ाने लगे !