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Kalpesh Vyas

Abstract

5.0  

Kalpesh Vyas

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मोमबत्ती

मोमबत्ती

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जलती हुई उस मोमबत्ती को तो सब ने देखा 

पर उस के मन की वेदना को किस ने देखा ?


उजाले की गैरहाजरी को पुरा करती रही

अपनी ज्योत से वो अंधेरा दूर करती रही 


'चिराग तले अंधेरा' कहावत वो जानती थी

उस कहावत को भी नजरअंदाज करती रही


तेज़ हवा के झोंके से, मोमबत्ती लड़ती रही 

वो हार न मानी, अपनी जिद पर अड़ी रही


ज्योति स्वयं रातभर दीप्तिमान रही

उजाला वो महफिल को देती रही


धागा स्वयं भी तो सारी रात जलता रहा

वह ज्योति को दीप्तिमान रखता रहा


मोम खुद धागे को लगातार ईंधन देता रहा 

वह भी तो देर तक चुपचाप पीघलता रहा


मोम पीघल के कुछ ऐसे पीघल रहा था 

जैसे हर आँसू, मोती की बूँद बन रहा था।


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