बेपरवाह
बेपरवाह
चलो कुछ सोचा जाए अपने बारे में भी ,
चलो ज़माने से बेपरवाह हुआ जाए ।।
क्यों सोचूं
कोई सोचता क्या है!
क्यों देखूं
कोई देखता क्या है!
क्यों सुनूं
कोई सुनता क्या है!
मैं भी तो ज़माना हूं;
कब सोचा मैंने
किसी के बारे में,
वक्त कहां है मेरे पास।
कब देखा मैने
क्या करता है कोई
ताकत है, ना कोई ख़ास।।
अपनी दुख तकलीफों को सुना कर
चलो बेपर्दा हुआ जाए।
किसी राज़ के खुद खुलने से
चलो बेपरवाह हुआ जाए।।
चार लोग क्या कहेंगे?
ये कैसी सोच , ये कैसा डर !
सही क्या है ? गलत है क्या
बस इसकी करो फिकर।।
ज़माने को खुश करने वाले,
खुद से धोखा कर जाते अक्सर।
सुबह के भूले तुम भी हो तो,
सांझ हुई अब लौट आओ घर ।।
लोगों के दिखावों से ,
चलो अब एकतरफा हुआ जाए।
कोई क्या कहेगा! क्या सोचेगा!
चलो इस सब से बेपरवाह हुआ जाए।।