जिम्मेदारियाँ
जिम्मेदारियाँ
चलता था पहले किसी और के सहारे
पर अब अपने कदमों पर खड़ा हो गया हूँ
कहने लगी है मुझ से जिम्मेदारियाँ मेरी
कि अब मैं शायद बहुत बड़ा हो गया हूँ
एक वक्त था जब भी पापा के पैसों से
अपनी जेब अक्सर भर लिया करते थे
जिद्द बिना वजह की भी होती तो क्या
उन्हें आखिर पूरी कर ही लिया करते थे
अब तो मैं दिन भर खुद ही कमाता हूँ पर
आज का कमाया कल खर्च हो जाता है
पापा के पैसे थे जो बच जाया करते थे
मेरे पैसों से बस घर का खर्च आता है।
सो जाता जब थक कर मैं रातों में
माँ उठा के खाना खिलाया करती थी
ग़लतियाँ करता था अनजाने में जब भी
वो सही गलत में फर्क बताया करती थी।
अब कितनी रातें बिना नींद और खाने के
अधूरे ख्वाबों में गुज़र जाया करती हैं
सुकून था जिनके घर आंगन में
उनकी याद बहुत ही सताया करती है
कल बैठे कंधों पर जिनके देखी दुनिया
अब उनके कंधों का सहारा बन गया हूँ।
कहने लगी है मुझसे जिम्मेदारियाँ मेरी
कि अब मैं वाकई में बड़ा हो गया हूँ