नागरिकता
नागरिकता
सुप्त परी भावनाओं को जब
उर्जा कलम की मिलती है
सत्यासत्य को विस्मृत कर तब
वह दर्पण समाज का बनती है।
भावावेश में मनुज जब जब
सीमा को लांघ जाता है
साहित्य की सीख तब तब
मर्यादा का पाठ पढ़ाता है।
न जाने कितने है विकॄत विचार
मर्यादाएं जिससे होती तार तार
साहित्य की अब है यही पुकार
ऐ कलम तू बदल ले अपनी धार।
स्व हितों को साधने में
लगे हैं देश को बांटने में
अपनों को छाटने में
तलबों को चाटने में।
कह रहा है कतरा कतरा
लोकतंत्र को है खतरा !
सत्ता की है जिनको भूख
उनका ही है यह रुख।
एक समय....
असहिष्णुता का माहौल था
क्योंकि चुनावी दौर था
पुरुस्कार तो चावल दाल का कौर था
कुछ नहीं ...वो बस देश का माखौल था।
आज अवश्य मारीच ने भी
विपक्ष का लोहा माना होगा
आखिर उस मायावी ने भी
एसा भ्रम जाल न फैलाया होगा।
देख नजारा भरतखंड का
विश्व को आनंद है
देख हश्र युवाओं का
द्रवित विवेकानंद है।
गृहक्लेश से त्रस्त हम
हिंसा में मदमस्त हम
हम आपस में ही लड़ गए
आप से ही हम हार गए।
ध्येय स्पष्ट है विधेयक का
समय है सम्यक् अनुशीलन का
स्वागत है सरकार के निर्णय का
स्वागत है नागरिकता के नए परिसीमन का।