किसान
किसान
एक व्यक्ति को देखा कुछ बच्चों के साथ,
कीचड़ और मिट्टी में सने थे सभी के हाथ।
घृणा हो रही थी लगा मुझे वो नहाते नहीं थे,
या फिर शायद वो वक्त इतना पाते नहीं थे।
पीछा किया उनका तो मुझे ये ज्ञात हुआ,
आखिर क्या-क्या था उनके साथ हुआ।
परिवार तो है छोटा, बीवी बच्चे रहते हैं,
कई परेशानी वो बिना शिकायत सहते हैं।
शहर से मीलों दूर वो परिवार असहाय था,
किसान थे तो खेती करना ही व्यवसाय था।
गरमी की धूप में वो किसान वहीं अड़ा रहा,
सूरज ढल गया पर वो खेतों में ही पड़ा रहा।
चिंतित देखा तो मैंने पास जाकर पूछा,
बोलना चाहा पर मुझे कुछ नहीं सूझा।
रात हुआ और मैं भी अपने घर को आई,
मम्मी को फिर ये सारी बातें मैंने बताई।
कहा किसान है जो दिनभर मेहनत करते हैं,
उनकी वजह से हम अपना पेट भरते हैं।
हाथ मिट्टी और कीचड़ में सना होता है,
ये अनाज उस मिट्टी में ही बना होता है।
जो अन्न है ये उनकी बदौलत पाते हैं,
पर वो मुनाफा बिल्कुल नहीं ले पाते हैं।
दूसरे दिन मैं फिर सुबह वहाँ पहुँच गयी,
देखा तो पैर तले मेरे जमीन खिसक गयी।
वो किसान फाँसी के फंदे से लटका था,
घर में उनके सिर्फ एक टूटा-सा मटका था।
कर्ज में डूबा और खेती कुछ खास नहीं,
करने को क्या जब पैसे ही पास नहीं।
चारों तरफ सूखा और सूखे पेड़ों के तने थे,
इस बार मिट्टी में बच्चों के हाथ सने थे।