मैं जीने लगी
मैं जीने लगी
अँधेरा छँटा
रातों में सोते हुए
दर्द का दुख का
जीवन ग़ुलाम हुआ।
स्वप्न कुछ आया एसा
साँसे बढ़ने लगी
मैं उड़ने लगी
खुले आसमान में
अपने ख़्वाब में।
संग चारपाई
चप्पल, लाइट
संग सबको ले
मैं उड़ने लगी।
ज़िंदगी की
प्रताड़ना को भूल
उस खुले सुनहरी
आसमान में
मैं उड़ने लगी।
ज़िंदगी जीने लगी सोनिया
रातों को सुबह का
उजाला महसूस हुआ
कुछ इस तरह
मैं सोने लगी।
सुबह ज़िंदगी झेलती
अंधेरों में हँसती
अपने स्वप्न को जीती
ऐसे ही मैं जीने लगी।