मौन
मौन
सूरज चंदा और तारे भी मौन हो गए।
नदिया दरिया सागर भी कही सो गए।
सन्नाटा सा छाया है हुआ है धरा पर,
सारे पंछी और पशु भी कही खो गए।
जो मौन रहते थे उनसे क्या सवाल करें ?
चुप नहीं थे जो, उनसे क्या बवाल करें ?
बोलने वाले थे जो सबसे ज्यादा,
आज उन्हें मैं मौन देख रहा हूँ।
क्यों किसलिए कैसे वे कौन हो गए ?
कोई तो बताये क्यूँ वो मौन हो गए ?
जितने मुँह उतनी बातें सुनी थी लेकिन
सबको चुप्पी साधे मौन देख रहा हूँ।
मानवता पर दानवता हावी हो रही है।
पौरुष बल की शक्ति कहाँ खो रही है ?
मर्यादा का पालन करने वालों को।
मर्यादा के टूटने पर भी मौन देख रहा हूँ।