गीतिका
गीतिका
नफरत नहीं उर में रखें,अब प्रेम की बौछार हो
इक दूसरे की भावना का अब यहाँ सत्कार हो।
जो भाव की अभिव्यक्ति का,ये सिलसिला है चल पड़ा
ये लेखनी सच लिख सके, जलते वही अंगार हो।
ये रूठने का सिलसिला क्यों आप अब करने लगे
अनुराग से तुमको मना लें ये हमें अधिकार हो।
जीवन चक्र का सिलसिला यूँ अनवरत चलता रहा
सद्भावना अरु प्रेम से प्रतिदिन यहाँ त्यौहार हो।
बेकार बातों की बहस का सिलसिला क्यों हो रहा
सम्मान करना युगपुरुष का अब सदा आचार हो।
खबरें परसते जा रहे ये झूठ में लिपटी हुई
सच लिख सके जो अब सदा ऐसा नया अखबार हो।