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Sonam Kewat

Abstract

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Sonam Kewat

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घमंड ओस की बूंदों का

घमंड ओस की बूंदों का

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पत्तों पर सिमटी हुई ओस की बूंदों ने,

इतराते हुए समंदर से कुछ यूँ कहा-

मैं हर जिंदगी में बसती हूं और,

मेरे जैसा कोई नहीं तुम्हें मिलेगा यहां।


पानी ही हूं मैं पर ओस बन कर,

एक एक कर नया रूप पाया है मैंने।

छोटी बूंद ही सही तो क्या,

सींप में बंद होकर मोती बनाया है मैंने।


शाम ढ़ल जाए तो मैं आती,

डालों, फूलों और पत्तों पर जमती हूं।

हीरो से तुलना होती है मेरी क्योंकि,

मैं उस जैसी ही चमकती हूं।


अरे ! बाकी चीजों की छोड़ो,

इंसानों के लिए भी मैं अनमोल हूं।

आंसुओं बनकर बहती हूं आँखों से

भावनाएं जताने वाली एक बोल हूं।


यहां तक उनकी सफलताओं को

मुझसे खुद ही लोगों ने जोड़ा है।

पसीनाओं की बूंद में बन जाऊँ तो,

मेहनत और बाधाओं को भी तोड़ा है।


इतराते हुए वह ओंस सरक गई,

उसी समंदर में जा गिरी कहीं।

ओंस की जो बूंद थी पत्तों पर,

वह समंदर से अलग मिली नहीं।


इसलिए कहते हैं दोस्तों याद रखना,

घमंड अस्तित्व को भी मिटा देता है।

बूंद कितनी भी कीमती क्यों ना हो,

समंदर उसे खुद में मिला ही लेता हैं।


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