शतरंज की महारानी ...।।
शतरंज की महारानी ...।।
शतरंज का खेल ऐसा खेला
उड़ा फेंका ज़ालिम ज़माने को
उन दकियानूसी ख़यालों
और रिवाज़ों के कारख़ाने को
रानी सुनहरी
मोहरें थी क़ातिल
चले थे करने अपनी क़ैद में
उसकी आज़ादी को
उसकी ताज़गी को
उस रानी को
चले थे उसके हृदय को
वो करने ख़त्म
चले थे उसे वो इतने भस्म
ज़िंदगी रानी सी थी मगर
घूटी वो नौकरानी सी थी
हवा कुछ ऐसी चली
चाल कुछ ऐसी पड़ी
उलट फेर हो गया सोनिया
ज़िंदगी का एक नया
मोड़ सा आ मिला
आज फख़्र से खड़ी है
कुरूप काले मोहरों के बीच
काली परछाईं और
पूराने कुचले
समाज के बीच
खड़ी वो अकेली है
चमक रही
श्वास ले रही
वो रानी
वो शतरंज की महारानी ।