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Ajay Gupta

Classics

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Ajay Gupta

Classics

माया का चक्कर

माया का चक्कर

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माया के चक्कर में पड़कर

भागा जाता है इंसान

दौलत की यूँ तलब लगी है

समझे पैसे को भगवान।


समझ नहीं है इसकी छोटी

फिर भी क्यों भरमाय

सब कुछ इसके पास है माना

मिटे ना इसकी हाय।


अंत समय तक ऐसे ही

भागम-भाग मचायेगा

सच को देख सामने अपने

बहुत मगर पछतायेगा।


पैसे का सदुपयोग करो तो

कितना हो मन को संतोष

अपना हित और जग का हित

कितनों का हो पालन-पोषण।


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