दुल्हन: माँ: एक गाथा:भाग:3
दुल्हन: माँ: एक गाथा:भाग:3
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नौ महीने रखती तन में,
लाख कष्ट होता हर क्षण में,
किंचित ही निज व्यथा कहती,
सब हँस कर सह जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
किलकारी घर में होती फिर,
ख़ुशियाँ छाती हैं घर में फिर,
दुर्भाग्य मिटा सौभाग्य उदित कर,
ससुराल में लाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
जब पहला पग उठता उसका,
चेहरा खिल उठता तब सबका,
शिशु भावों पे होकर विस्मित ,
मन्द मन्द मुस्काती है,
धरती पे माँ कहलाती है।