बचपन
बचपन
बचपन जब जूनियर होता है,
हर पल सोता व रोता है।
लंगोट बदलते मां कभी थकती नहीं,
माथे पर शिकन कभी आती नहीं।
मेरी हर फोटो पापा की dp होती,
मुहल्ले में दादी मेरे गुण गाती।
शरारत और ज़िद अब मेरे थे गुण,
शायद बड़े होने के थे लक्षण।
मासूम शरारत पर सब हंसते थे,
मैं किस जैसा लगता हूं, सब अपनाते थे।
स्कूल जाते ही सब बदलने लगा,
पढ़ाई का बोझ अखरने लगा।
नए दोस्त व खेल अच्छे लगे,
अब शरारतों के चर्चे होने लगे।
माता - पिता का डांटना नियम बन गया,
मैं नहीं सुधरूंगा, ज़िद पर अड़ गया।
वक्त बीता समझ आने लगी थी,
उस डांट में, मेरी ही भलाई थी।
देख मेरा रिज़ल्ट टीचरों का रुख बदला,
घर वाले बोले, यह छुपा रुस्तम निकला।
बड़ा होकर मैं भी देश के काम आऊं,
सबका खयाल रख, खूब नाम कमाऊं।