सृजन बने
सृजन बने
मन से मन का मीत बन जाओ
नारी से नारी का सृजन बन जाइये
आंचल से और ना अब आंसू पोंछो
दमखम से कोई और इलाज सोचिये।
यह एकांत यह अंधेरा
यह उदासी मनहूस घुटन
भीतर से द्वार बंद हो तो
बंद दरवाजेसे कैसी आयेगी किरण।
बंद दरवाजे को हल्के से खोलिए
रोशनी के साथ हँस-हँसकर बोलिए
पीले पात दर्दे मौन झर जाएगा
धीरे-धीरे ह्रदय के घाव भर लीजिए।
सीढ़ी है अपने दिल में घर में नहीं
सृजन को भी खुशी आती है वही
अगर हम पल दो पल कोलाहल में जिए
दूसरों के दुख दर्द को अंजुलि भर पिए।
है सखियों को अपना बनाने की घड़ी
सीमाएं कभी नहीं होती आरक्षण की कोई।