अंतर्द्वंद
अंतर्द्वंद
पूनम की रात थी, नींद ओझल सी थी।
दिल जाग रहा था, दिमाग ताक रहा था।
दिल क्यों जाग रहा है?
दिमाग यही सोच रहा था।
दिल ने आकाश में देखा ,
चाँद से फिर पूछ बैठा
मियाँ चाँद सो रहे हो?
मगर जवाब तो आना न था!
आता भी कैसे?
चाँद सिर्फ ख्यालों में बात कर सकता है।
ख्यालों में ही धरती पर लाया जाता है।
हक़ीकत से कोसो दूर है,
ख्यालों का वो चाँद।
दिल की हरकत देख,
गुस्सा दिमाग को भरपूर हुआ।
पर दिमाग हँसने पर मजबूर हुआ।
बोला यार फिर से शुरू हो गए तुम,
भूल चुका है तुमको वो वर्षो पहले।
तुम क्यों उसको याद करते हो?
अगर उसे आना होता तो जाता नही।
कोई और उसके दिल को भाता नही।
दिल को बहस करने का मन था नही।
उसने बोला भाई तुम जो बोलो वही सही।