फुरसत
फुरसत
क़ई दिन हुए, मिले हुए !
न फुरसत हुई, न रुबरु हुए।
शिकवों का क्या ? शिकायतों का क्या ?
न हम खुद से मिले, न गुफ्तगू हुई।
चर्चा शहर में यूँ, मेरे रोने की है
न कोई हमदर्द हुआ, न दिल को राहत हुई।
रह रह के पथिक, कब कातिब़ हुआ
न कोई हैरत हुई, न आकिबत हुई।