कन्यादान
कन्यादान
रत्न-कंकणांनी | हात का शोभती|
सजती-खुलती | दानानेच ||१||
दानाचे महत्व | जाणावे पुराणी ||
सदा ते स्मरणी | असू द्यावे ||२||
नित्य, नैमित्तिक| काम्यरुपी दान||
प्रकार हे तीन | ऋग्वेदात ||३||
सढळ हातांनी | करा सदा दान||
नको अभिमान | अंतरात ||४||
कळो नये दुज्या|एका त्या हाताचे|
गंध कर्तव्याचे | मोहरावे ||५||
वीर तो अमर| कर्ण महादानी|
दातृत्वाचा धनी |युगे युगे||६||
दिव्य दानतत्त्व |अक्षय सुखात|
येई पदरात | परतोनी||७||
जीवनात दान| सर्वश्रेष्ठ धर्म|
तृप्तीचे हे मर्म | जाणुनी घे ||८||
निःस्वार्थी ते दान |महादाता देव
भोगतात जीव |जळी-स्थळी ||९||
सुपात्रास सदा| दान ते करावे |
जगती दिखावे |करू नये ||१०||
विद्या, नेत्र, कन्या |दान श्रेष्ठ पुण्य|
करी तोचि धन्य | जन्मांतरी||११||
चोहीकडे सृष्टी |नदी आणि तरु|
करूनी घे गुरु| तयांसिच ||१२||
व्यय उपभोगी |लया जाई धन |
दान आजीवन | न करी जो ||१३||
नांदी यावी मनी|नवविचारांची|
आशा बदल्याची |नसो तेथे||१४||
सांगतेय ऐका| आहे कन्यादान|
दानात महान |जगामाजी ||१५||
नका करु त्रागा | लेक येता पोटी
भाग्याची ती पेटी | मायबापा ||१६||