बहरली अबोली
बहरली अबोली
बहरली फुलली अबोली
गेली आज न बोलताच |
सुंदर नाजूक पाकळ्यांसह
चढवत सुंदर रंगाचा साज | |१| |
हिरव्यागार पानोपानी असंख्य
फुले ती कितीतरी उमलली |
गजरा करावा कि हार गुंफावा
चुकवीत हि अनमोल वेळ | |२ | |
क्षणभंगुर आयुष्य तरीही किती
त-हेत-हेन ही राहिली हसवत |
सौंदर्याची उधळण करीत मुक्त
खरी फसवत होती स्वत:लाच| | ३| |